
पहले जया प्रदा ने छेड़ा, फिर आज़म खां ने : बुरा न मानो होली है !
| | 11 March 2018 7:53 AM GMT
कहने को पढ़े लिखे विद्वान तो आज़म खां हैं। मगर, दिखता कहां है? एक फ़िल्म अभिनेत्री अगर राजनीति में...
जया प्रदा और आज़म खां दोनों एक-दूसरे से दूर रहना चाहते हैं लेकिन दूर रह नहीं पाते। राजनीति में नफ़रत के बीच जो ये मोहब्बत का संबंध होता है उसे परिभाषित कर पाना मुश्किल होता है। दोनों नेताओं के बीच इतनी नफ़रत है कि एक पार्टी में रहकर भी दोनों लड़ते रहे थे और जब अलग हैं तब भी लड़ते दिखते हैं।
जया प्रदा ने तो कहा था आज़म खां 'जी'
आज़म खां हमेशा से जया प्रदा को 'नाचने वाली' कहकर ही संबोधित करते रहे हैं। ऐसा वाकया याद नहीं आता जबकि उन्होंने कभी सम्मान के साथ जया प्रदाजी कहा हो। हालांकि जया प्रदा ने जब कभी भी आज़म खां का नाम लिया है, तो उनके नाम के साथ 'जी' ज़रूर लगाया है।
आज़म ने जवाब में जयो कहा कहा 'नाचने वाली'
कहने को पढ़े लिखे विद्वान तो आज़म खां हैं। मगर, दिखता कहां है? एक फ़िल्म अभिनेत्री अगर राजनीति में आ गयी, तो उसे बार-बार 'नाचने वाली' कहना कहां की मर्यादा है? बहुत पहले आज़म खां ने यह भी कहा था- "हम तो नाचने-गाने वाली को भी सांसद बना देते हैं।" तब आज़म खां अपनी ही पार्टी पर तंज कस रहे थे।
आज़म खां बार-बार करते रहे हैं जया प्रदा का अपमान
एक 'नाचने वाली' किसी की पत्नी होती, मां होती है, अभिनेत्री, नेत्री होती है तो वह सांसद क्यों नहीं हो सकती? अभी-अभी समाजवादी पार्टी ने नरेश अग्रवाल की जगह जया बच्चन को वरीयता और प्राथमिकता देते हुए राज्यसभा के लिए नामित किया है। रेखा पहले से वहां मौजूद हैं। शबाना आज़मी वहां रह चुकी हैं। हेमामालिनी को भी जनता ने सांसद चुना है। बहुत सारे फ़िल्मी कलाकार राज्यसभा या लोकसभा में जा चुकी हैं। आने वाले समय में भी जाती रहेंगी। फिर आज़म खां सिर्फ जया प्रदा को ही 'नाचने वाली' कहकर बार-बार उनका क्यों अपमान करते हैं?
सिर्फ जया प्रदा नहीं नारी जाति का अपमान करते रहे हैं आज़म खां
पढ़े-लिखे होने के बावजूद आज़म खां यह क्यों भूल जाते हैं कि अगर वे जया प्रदा का नाम लेकर कुछ बोलें तो एक आदमी के लिए उनके अपशब्द होते हैं। जब वे नाम नहीं लेते हैं तो पूरी नारी जाति के लिए उनके अपशब्द हो जाते हैं। यह मर्दाना सोच है, पुरुषवादी सोच है कि सभी नारियां घर से बाहर न निकले, बुर्के में कैद रहे और अगर किसी स्त्री ने नाचने-गाने का पेशा अपना लिया तो वह गालियों के लायक हो जाए।
'नाचने वाली' शब्द का होता रहा है गलत इस्तेमाल
किसी जमाने में 'नाचने-गाने वाली' का मतलब कोठे पर काम करने वाली यौनकर्मी हुआ करता था। मगर, अब ऐसा नहीं है। अब हम उन्हें भी सम्मान के साथ देखते हैं। आखिर मर्दों की वजह से ही कोठे ज़िन्दा हैं? अगर कोठे में मौजूद स्त्रियों के लिए अपशब्द का इस्तेमाल सही है तो वहां जाने वाले मर्दों के लिए ऐसे अपशब्द क्यों नहीं इस्तेमाल किए जाते? बहरहाल इस बहस में शामिल होने के लायक भी नहीं हैं आज़म खां।
जया प्रदा-आज़म खां के बीच रहा है 'सौतिया डाह'
आज़म खां के इलाके में जया प्रदा ने राजनीतिक करियर ढूंढ़ा। यह सौतिया डाह की वजह हो सकती है। मगर, असल लड़ाई उनकी अमर सिंह के साथ रही है। जया प्रदा को फ़िल्म से राजनीति तक का सफर तय कराने वाले अमर सिंह रहे हैं। अमर सिंह और आज़म खां में कभी बनी नहीं। जब आज़म खां को समाजवादी पार्टी छोड़नी पड़ी तो उन्होंने इसके लिए अमर सिंह को जिम्मेदार ठहराया और जब अमर सिंह को समाजवादी पार्टी से दूर होना पड़ा तो उन्होंने आज़म खां को इसका ज़िम्मेदार ठहराया। इनके दरम्यान ज़ुबानी युद्ध चलता रहा है। जया प्रदा इस युद्ध में अस्त्र-शस्त्र-ढाल सबकुछ बनकर इस्तेमाल होती रही हैं। जब आज़म खां को अमर सिंह पर हमला करना होता है या उन्हें बेचैन करना होता है तो वे बस जया प्रदा को निशाना बनाकर कोई बदज़ुबानी की चाल चल देते हैं।
इस बार जया प्रदा ने की 'छेड़खानी'
इस बार स्थिति थोड़ी भिन्न है। जया प्रदा ने बताया कि जब वे फ़िल्म पद्मावत देख रही थीं तो अलाउद्दीन खिलजी को पर्दे पर देखते हुए उनके ज़ेहन में आज़म खां की याद आती रही। अब जया प्रदा ने अभी-अभी फिल्म पद्मावत तो देखी नहीं होगी। तो आज उन्हें ये बात बोलने की ज़रूरत क्यों पड़ी? जाहिर है इस बार 'छेड़खानी' जया प्रदा ने की है। जवाब में आज़म खां ने अपना वही पुराना रूप दिखाया। नये सिरे से कह दिया कि वे 'नाचने वाली' के मुंह नहीं लगना चाहते। ऐसा वे बार-बार कहते रहे हैं मगर मुंह लगने से बाज भी नहीं आते।
खिलजी के आने से पहले पद्मावती को छोड़नी पड़ी धी दुनिया- आज़म खां
मुरादाबाद में एक मुशायरे में आज़म खां ने जया प्रदा से अपने अंदाज में मुंह भी लगाते दिखे। उन्होंने कहा, "सुना है खिलजी एक बुरा इंसान था और खिलजी के आने से पहले ही पद्मावती को दुनिया छोड़नी पड़ी थी।" अब आज़म खां से कैसे पूछा जाए कि मुंह लगना किसे कहते हैं। आज़म खां और जया प्रदा एक-दूसरे से करते रहते हैं छेड़खानी, नाराज़गी का दिखावा भी करते हैं लेकीन वास्तव में एक-दूसरे से नाराज़ नहीं रहते। इस बहाने वे मीडिया में बने रहते हैं, चर्चा में बने रहते हैं। नफ़रत के बीचे मोहब्बत की छांव शायद ऐसे ही चला करती है। चलिए होली का मौसम है। इन दोनों के बीच होली खेलने का अंदाज ही यही है- "बुरा न मानो होली है।"
(मेरा यह आर्टिकल यूसी न्यूज़ पर भी उपलब्ध है। http://tz.ucweb.com/3_3gZPT )
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