
चुन लो कमल या हथकड़ी
पी चिदम्बरम को जिस तरीके से भगोड़ा घोषित कर दिया गया, वे 27 घंटे तक भगोड़ा करार दिए जाते रहे वह...
पी चिदम्बरम को जिस तरीके से भगोड़ा घोषित कर दिया गया, वे 27 घंटे तक भगोड़ा करार दिए जाते रहे वह रणनीतिक था। इस देश में प्रचलित परम्परा यही रही है कि जो कोई भी अग्रिम ज़मानत लेगा वह थोड़े समय के लिए भगोड़ा ही रहेगा। मगर, ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी अदालत से अग्रिम बेल की याचिका खारिज हो जाने के बाद 5 घंटे के भीतर घर में नोटिस चिपका दिया गया हो कि आरोपी को 2 घंटे में पेश होना होगा। ऐसा सीबीआई ने किया। ऐसा भी कभी नहीं हुआ कि 7 घंटे के भीतर ही लुकआउट नोटिस जारी कर दिया गया। तकनीकी रूप से भगोड़ा घोषित कर दिए जाने के बाद मीडिया ने भी चिदम्बरम को भगोड़ा घोषित कर दिया।
मोदी सरकार के लिए पी चिदम्बरम का मसला इकलौता या व्यक्तिगत मसला नहीं था। उसने इसे कांग्रेस को बदनाम करने का मौका बना दिया। भगोड़ा, भगोड़े का साथ देने वाली कांग्रेस, अब किसकी बारी, सोनिया-राहुल-वाड्रा- तक बात पहुंचने जैसे संदेश दिए जाने लगे। मीडिया ने इस काम में बीजेपी सरकार का भरपूर साथ निभाया। मतलब ये कि ईडी, सीबीआई और मीडिया ने मिलकर पी चिदम्बरम को भगोड़ा घोषित इसलिए किया ताकि बीजेपी को राजनीतिक फायदा हो सके।
जो आरोपी सुप्रीम कोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए कोशिशें कर रहा हो, जिसके विरोध में सरकारी एजेंसियों ने कैविएट दाखिल कर रखा हो जिसका मतलब है कि चिदम्बरम को सुने जाते वक्त एजेंसियों का पक्ष भी सुना जाए, तो वह भगोड़ा कैसे हो सकता है?
अब यह तय लगता है कि यह बदले की कार्रवाई है। पी चिदम्बरम को जेल भेज देने से वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह का वो बदला पूरा हो जाता है जब पी चिदम्बरम ने गृहमंत्री रहते हुए उन्हे कभी सलाखों के पीछे भिजवाया था। सवाल ये है कि क्या अब देश में बदले की राजनीति चलेगी? अब यह बात कही जाने लगी है कि राजनीतिज्ञों को या तो कमल को चुनना होगा या फिर हथकड़ी। बीजेपी में शामिल हो चुके नेताओं के खिलाफ सीबीआई, ईडी जैसी संस्थाओं की सुस्त जांच के कई उदाहरण ऐसी बातों को बढ़ावा दे रहे हैं।